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तलाश–वर्षा वेलणकर

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वर्षा ज्या व्यक्तिरेखा समोर आणते...आणि जी कथा लिहीते...त्यातून खूप काही शिकण्यासारखे असते...लेखक म्हणून.

तलाश–वर्षा वेलणकर

ढेर सारी गालियाँ खा कर लालन खाली पेट उछलता हुआ ड्योढ़ी से बाहर निकल आया। रास्ता तय था और मंजिल भी। आधा-पौना चाल चलते हुए वो सीधा जाकर कुएं से सटे पीपल के पेड़ के पास जा पहुँचा। गलियारें से आती सड़क पूरी की पूरी सुनसान थी। लालन इस समय को बखूबी घेरे हुए था। अब उसे देखने-टोकनेवाला आसपास कोई न था। आते वक्त उसने कोठरीसे आम और पापड़ चुराए थे। उसकी आधी-पौनी चाल के चलते जेब में रखे पापड़ चूरचूर हो गए थे। पर उसका उसे गिला ना था। पीपल की ढोली में उसने छुपाई हुई कटोरी निकाली और पास के कुएं से उसे धोकर उसमे पानी भर लाया। अब आम निचोड़कर उसने कटोरिके पानी में डाला और पापड़ की चुरिको उसमें भिगो दिया।

लालन श्यामाप्रसाद के बड़े बेटे का पहले बीवीसे हुआ बेटा था। याने घर का सबसे बड़ा वारिस। पर परिवार के किसी भी सदस्य को लालन से कोई उम्मीद नहीं थी और ना ही कोई हमदर्दी। दस साल के लालन को सब पानी में देखते थे सिवाय उसके दादा के। दादाजी का चहीता लालन उनकी जायदाद का एकलौता हकदार जो था। बाकी सभी की केवल बेटियाँ थी। पराया धन। मगन लालन को ना चाहने की सभोंके पास एक और वजह थी। लालन गूँगा था। बिना बोले वो घर पर दिनभर उधम मचाता फिरता। घर की सारी औरतोंको एक और दिक्कत थी लालन से।

लालन उन सभी को जब भी मौका मिले घूरता रहता था। किवाड़ के पीछे से, खाना खाते वक्त, चूल्हे चौके के समय और जब उसकी सौतेली माँ और दो काकी माँ अपने बच्चियोंको दूध पिलाती तब भी। लालन को उन्हें देखने का चस्का सा लगा था। वो उनके पीछे पीछे घूमते रहता था। छोटा सा था तो कभी किसी को यह बात खटकती ना थी। मगर लालन की बढती उम्र ने उसे मानो इन औरतोंका दुश्मन बना दिया। एक दिन तो बवाल मच गया। छोटी काकी बाथरूम में थी और बाहर आयी तो उसने लालनको दरवाजे पे खड़ा पाया। खूब कहा-सुनी हुई। लालन को कुछ समझ नहीं आया की उसकी पिटाई का कारण क्या हैं। वो मार से बेजार होकर बाबा का हाथ छुड़ाकर भाग खड़ा हुआ। तबसे पीपल के पेड़ का बसेरा लालन ने तय कर लिया था।

उसकी शिकायतों से परेशान होकर दादाजी ने लालन के लिए एक टीचर का इंतजाम किया। अब एक कमरेमे लालन और टीचर की दोपहर मजेसे गुजरने लगी थी। अक्षरोंके साथ-साथ लालन चित्र बड़े अच्छे निकालने लगा था। उसका पसंदीदा पीपल का पेड़, उसका कुआँ, पेड़ पर दिनभर चहकनेवाले पंछी सब अब आकर लालन के चित्रों में बस गए थे। टीचरजी बड़े खुश थे और लालन अब कुछ कुछ अक्षर बोलने भी लगा था। दादाजी अब और लाड करने लगे थे लालन का। जब वो अपने चित्रोंसे बात बताने की कोशिश करने लगता तो दादाजी उससे सवाल पूछते और वो जवाब देता।

एक दिन जब लालन और दादाजी टीचर की राह देख रहे थे तो उन्होंने लालन की छोटी काकी की ओर इशारा करते हुए लालन से सवाल किया, "ये कौन हैं तेरी?" सवाल पूछते वक्त दादजीने हाथोसे औरत के शरीर का चिन्ह बनाया था। लालन ने झट से अपनी कॉपी उठाई और वही तस्वीर बनाकर उसने दादाजी को दिखाई। तस्वीर देखकर उनकी आँखे जब फिसलती हुई लालन ने लिखी अक्षरों पर पड़ी तो आँखे धुँधला गयी थी। उन्होंने लालन को बाँहों में भींच लिया।

हर औरत को बढ़ती उम्र के लालन में एक मर्द नजर आने लगा था। मगर लालन हर उस औरत में एक माँ ढूँढ रहा था।


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