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Wo Chand Kahaa Hai? - Nikita Pusalkar

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वर्षा वेलणकर ह्यांच्या पाठोपाठ हिंदी मध्ये इतके सुंदर लेखन वाचले की खुप आनंद होतो.

वो चाँद कहा हैं???? – निकिता पुसाळकर

बच्चों ने पुराना घर बेचकर बीसवीं मंजिल पर आलीशान मकान लिया था, तबसे शूंभाकर का बाहर आना जाना कम हीं हो गया,औऱ कभी बाहर जाना हुआ तो वो चाँद निकलने के बाद हीं बाहर जाता,पहले जहां शूंभाकर रहता था उसी पुरानी बस्ती मे जाकर वो कुछ ढूंढता रहता? शायद वहाँ उसकी पुरानी यादें बसी थी, बहोत दिन हो गए थे उसे कही बाहर गए हुए, लेकिन आज उसे कुछ अजीब सी घूटन हो रहीं थी, उसके पाँव अपने आप बाहर कि ओर चल पडे, चाँद निकल आया था आज फिर से वो अपने पुराने बस्ती मे गया औऱ जाकर कुछ ढूंढने लगा? बहुत ढूंढने के बाद थक कर एक पत्थर पर बैठ गया औऱ ऊंची ऊंची इमारतों को निहारने लगा, वहाँ से रोज अभिजीत नाम का एक उन्नीस, बीस साल का लड़का ट्यूशन के लिए जाया करता था,वो शूंभाकर को रोज कुछ ढूंढते हुए देखा करता था,लेकिन आज उसे रहा नहीं गया,पास जाकर उसने शूंभाकर से पूछा?

अभिजीत : आप यहाँ आकर क्या ढूंढते रहते हो?आपको कुछ चाहिए क्या दादाजी?

शूंभाकर : (हँसते हुए) मेरे पास बच्चों के मेहरबानी का दिया हुआ सब कुछ है, बस सिर्फ बात करनेवाले इन्सान नहीं हैं.......

अभिजीत : मैं कुछ समझा नहीं दादाजी?

शूंभाकर : एक कहानी सूनोंगे बेटा?

अभिजीत : हाँ क्यों नहीं?मेरे दादाजी भी मुझे बचपन मे कहानियां सुनाया करते थे,लेकिन जबसे हम यहाँ रहने आए पापा ने दादाजी को गांव भेज दिया, तबसे मैं कहानी सुनने के लिए तरस रहा था......

शूंभाकर : जानकी औऱ मैं....जानकी मेरी पत्नी,हमारी नई नई शादी हुई थी तब,वो मुझसे बहोत प्यार करती थी,बहोत खयाल रखती थी मेरा, नई दुल्हन थी फिर भी घर के कामों मे उलझ कर रह गई थी,कभी घूमने का समय तक नहीं मिलता था उसे, फिर भी कभी शिकायत नहीं कि उसने,मगर मैं समझ जाता था,कभी कभी समय निकाल कर उसे यहाँ घूमने लाया करता था,तब यहाँ ये बडी बडी इमारतें नहीं हुआ करती थी,जहाँ तक नजर जाए सिर्फ जमीनें हीं थी, हम चाँद निकलने तक घूमा करते थे,थक जाते तो इस पत्थर पर बैठ जाते, दो लोग बैठ सके इतना बडा पत्थर नहीं है लेकिन,एक दूसरे के लिए दिल मे प्यार हो तो कोई भी तकलीफ अच्छी ही लगती हैं,जब चाँद आसमान मे अपने पूरे पर खोलता था तो उसे देखने का मज़ा कुछ औऱ ही होता,वो चाँद औऱ उसके इर्द गिर्द हजारों सितारे, झीलमील करते नाचते हुए,बडा रंगीन नज़ारा होता था,ऊपर खुला आसमां निचे खुली जमीं,इसी पत्थर पर बैठ कर हम दोनों देखा करते थे वो दिलकश नजारे,अब एक सदी बीत गई उस बात को,अब बच्चों ने बीसवीं मंजिल पे मकान लिया हैं, फिर भी उसके दरिचे से कभी कभार हीं चाँद दिखता है,औऱ उसके इर्द गिर्द दो,चार सितारे बडी मुश्किल से नजर आते हैं, जैसे लगता हैं मानों वो सब मुझसे किसी बात पर नाराज़ हैं, या फिर शायद इतने बरसों बाद उन्हें देखने का मेरा नजरिया बदल गया हों?पता नहीं?अब पहले जैसा घूमना फिरना नहीं होता.... अब बस चमकीली रंगी हुई दीवारों को देखते दिन निकल जाता हैं,पहले जानकी थी तो रोज घूमना होता था,अब बाहर जाने का भी दिल नहीं करता,

अभिजीत : क्यों दादाजी आपकी पत्नी नहीं आती आपके साथ?

शूंभाकर : तुम्हारी दादी मुझसे रुठ गई हैं,पुराने घर से उसे बहोत लगाव था, उसकी यादें जुडी थी उस घर से,अपने घर को छोड़ आना वो बर्दाश्त न कर सकी,इसलिए मुझे ही छोड़ के चली गई,जब जानकी कि याद आती हैं तो चला आता हूँ यहाँ, औऱ वो जगह ढूंढता रहता हूँ जहाँ हम घूमा करते थे,ढूंढा करता हूँ उस चाँद को,उन्ह सितारों को,पर इन्ह ऊंची ऊंची इमारतों के बीच वो चाँद कहीं खों गया हैं, ऐसा लगता हैं जानकी कि तरह वो भी मुझसे रुठ गया हैं, औऱ जहां हम घंटों घूमा करते थे वो जगह भी अब नहीं रही, किसी ने बताया यही वो जगह हैं जहां पर अब ये आलीशान इमारतें बनी हैं,कितनी अजीब बात हैं ना बेटा, इन्सान ने तरक्की तो कर ली,लेकिन इन्सानियत का सौदा करने के बाद.....

शूंभाकर आसमान कि तरफ देख रहा था,चाँद अब आसमान मे अब पूरा था,वो चाँद को गहराई से देखें जा रहा था,औऱ अभिजीत शूंभाकर कि भरी हुई आँखों मे चाँद के अक्स को देख रहा था.......


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